श्रीऋषिकुलब्रह्मचर्याश्रम का परिचय

वाल्मीकि रामायण में जिस क्षेत्र को मरुकान्तार के नाम से सम्बोधित किया गया है, वह यही क्षेत्र है, जिसमें जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, गंगानगर, चूरू, हनुमानगढ़ आदि आते हैं। चारों ओर केवल और केवल बालू मिटटी पर ही दृष्टिपात होता है। किन्तु है बहुत सुरम्य। रेतीले टीलों को जब देखते हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है मानो सोने के चूर्ण का ढेर हो। जब थोड़ी तेज हवाएँ चलती हैं, तो उस स्वर्ण-चूर्ण पर प्रकृति लहरों का निर्माण करती दृष्टिगोचर होती है। यहाँ प्रातः और सायं का समय न केवल मनोरम है, अपितु ठंडी बयार का साक्षात् कोमल झोंका ही होता है। जो कृत्रिम ठंडक को मानो यह कह रहा हो कि देखो, तुम्हारे आँचल को त्यागकर यह मानव मेरी गोद में आनन्द के गोते लगाने आ गया है। सौन्दर्य की पराकाष्ठा को कोई देखना चाहे तो मरुस्थल में प्रातः पाँच बजे आये। पक्षियों की कलरव से लेकर वायु के प्रवाह की ध्वनि तक सब कुछ मनभावन होता है। चूरू इसी क्षेत्र में आता है। सड़क और रेल मार्ग से जुड़ा यह नगर बहुत विकसित नहीं है, किन्तु जितनी गहराई में इसके कुँओं में जल मिलता है, लोगों का ज्ञान भी उतना ही गहरा है।

खेल, संगीत, कवित्व, व्यापार आदि में यहाँ के लोगों ने राष्ट्रिय और अन्ताराष्ट्रिय स्तर पर झण्डे गाड़े हैं। संस्कृत के क्षेत्र में भी पण्डित विद्याधर शास्त्री जैसे विद्वानों ने बहुत नाम कमाया है। अध्यामविद्या के पुरोधाओं ने इस भूमि को न केवल स्वजन्म से पवित्र किया, अपितु श्रेष्ठ कार्यों से जनमानस को आन्दोलित और प्रेरित भी किया है। परमयशस्वी प्रातःस्मरणीय सेठजी श्रीजयदयाल जी गोइंदका (चूरू) और भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार (रतनगढ़) ने गोविन्द-भवन कार्यालय (कोलकाता), गीताप्रेस (गोरखपुर) तथा गीताभवन (स्वर्गाश्रम) की स्थापना की। इस युग के महान् सन्त ब्रह्मलीन स्वामी रामसुखदासजी महाराज की प्रेरणा भी इन सबके निर्माण में हेतु बनी। आप सबकी दूरगामी सोच के कारण ही श्रीऋषिकुलब्रह्मचर्याश्रम (चूरू) का निर्माण हुआ, जिसके माध्यम से वे छात्रों में सदाचार, नैतिक मूल्य, राष्ट्रभक्ति, संस्कृतानुराग, भारतीय संस्कृति और सभ्यता के प्रति अटूट प्रेम उत्पन्न करना चाहते थे। यह गुरुकुल आज भी उनके ध्येय की सम्प्राप्ति हेतु 1924 से निरंतर ऐसे व्यक्तित्वों का निर्माण कर रहा है। चूरू उच्चतम और निम्नतम तापमान के प्रतिमान भी स्वयं ही बनाता और बिगाड़ता है। गर्मी और सर्दी की इस भयता से बाहर के लोग यहाँ आने में थोड़ा संकोच भी करते हैं, किन्तु; यहाँ के लोगों ने इस विपरीत परिस्थिति में भी अपना मानसिक सन्तुलन बनाकर जीना सीख लिया है। श्रीऋषिकुलब्रह्मचर्याश्रम में इसके तपस्वी शिक्षकों ने भी अपनी साधना से शीत और ताप के मध्य सन्तुलन का झूला बना लिया है। श्रावण मास में इस झूले पर अध्यात्म की ऊबली (झूलना) कर आनन्द की गंगा बहाई है। यही कारण है कि इस गुरुकुल में सभी प्रदेशों के छात्र आना चाहते हैं। अब तो यह गुरुकुल शिक्षा के क्षेत्र में हुए क्रान्तिकारी परिवर्तनों को आत्मसात कर तकनीकी रूप से अग्रणी बन रहा है। इस आश्रम में अब स्वीमिंग पूल भी है, वहीँ फुटबॉल, वॉलीबॉल, खो-खो, बास्केटबॉल, टेबलटेनिस, बैडमिन्टन के सुन्दर कोर्ट, योग-केन्द्र भी बने हैं। अर्जुन की तरह अचूक निशाना साधना सबका ध्येय रहता है, इसलिए इस आश्रम में अब रायफल सूटिंग केंद्र भी खोला गया है। छोटे-छोटे बच्चों के लिए झूले, रिंग, कैरमबोर्ड, लूडो, स्लाइड आदि की सुविधा है। इस आश्रम में लगभग 15000 से भी अधिक संस्कृत, हिंदी, गणित, अंग्रेजी, विज्ञान, समाजशास्त्र, राजनीतिविज्ञान, इतिहास, भूगोल, भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता, कला, वेद, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद्, पुराण, स्मृति, शिक्षा, मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र, व्याकरण, साहित्य, दर्शन, योग, राजस्थानी सभ्यता एवं संस्कृति, कृषक आन्दोलन आदि से सम्बद्ध पुस्तकों का संग्रह है। श्रेष्ठ शिक्षकों द्वारा उत्तम शिक्षण दिया जाता है। इस महाविद्यालय में कंप्यूटर, बायो, कैमिस्ट्री, फिजिक्स, ज्योग्राफी आदि की लैब भी उपलब्ध हैं। वाचनालय में सभी प्रमुख दैनिक, मासिक, त्रैमासिक आदि पत्र-पत्रिकाओं का संग्रह भी है। आप आप आराम से बैठकर पढ़ सकते हैं। स्पोकन इंग्लिश, संस्कृत-सम्भाषण और GK and GS की कक्षाओं का सञ्चालन भी किया जाता है। जिससे बच्चे अपने करियर को अच्छेसे सुरक्षित कर सकते हैं। कुल मिलकर यह कहा जा सकता है कि श्रीऋषिकुल ब्रह्मचर्याश्रम, चूरू शिक्षा का एक उत्तम केन्द्र है। जिसमें आप भी अपना प्रवेश ले सकते हैं।

स्थान जानकारी

श्रीऋषिकुलब्रह्मचर्याश्रम चूरू में सदाचार और नैतिक मूल्यों का प्रचार करता है। यहाँ की संस्कृति और सभ्यता का अद्भुत संगम है।

स्थान

एस.बी.आई. बैंक के सामने, पुरानी सड़क, लाल घण्टाघर (धर्मस्तूप), चूरू, राजस्थान - 331001